फाइल फोटो
Rajdev Ranjan Murder Case: सीवान के चर्चित पत्रकार हत्याकांड में 9 साल बाद बड़ा फैसला आया है. 13 मई 2016 की शाम सीवान में ‘हिन्दुस्तान’ अख़बार के ब्यूरो चीफ़ राजदेव रंजन की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. एक गोली उनकी आंखों के बीच और दूसरी गोली गर्दन में लगी, जिससे मौके पर ही उनकी मौत हो गई थी. इस मामले में मरहूम सांसद और राजद के सीनियर नेता डॉक्टर मोहम्मद शहाबुद्दीन का नाम मीडिया ने जोर-शोर से उछाला था. उस समय भारतीय मीडिया ने जिस अंदाज़ में कवरेज की, उसे ‘मीडिया ट्रायल’ का सबसे बड़ा उदाहरण कहा जा सकता है.
राजदेव की पत्नी आशा रंजन के बयान पर सीवान टाउन थाने में FIR दर्ज की गई थी. इसके बाद राष्ट्रीय मीडिया ने लगातार इस हत्याकांड को शहाबुद्दीन से जोड़कर पेश किया. कई चैनलों और अखबारों की सुर्खियां थीं मानो अदालत का फैसला आए बिना ही उन्हें दोषी ठहरा दिया गया हो. मीडिया का रुख इतना आक्रामक था कि उस वक्त यह कहा जाने लगा कि “शहाबुद्दीन को कानून नहीं, मीडिया ने फांसी दे दी.”
CBI इस केस में किया बरी
मगर अब 9 साल बाद आए फैसले में CBI की अदालत ने साफ किया है कि डॉक्टर मोहम्मद शहाबुद्दीन की किसी भी तरह की इन्वॉल्वमेंट इस हत्याकांड में नहीं थी. अदालत ने अजहरुद्दीन उर्फ लड्डन मियां समेत 3 लोगों को निर्दोष करार दिया, वहीं विजय गुप्ता, रोहित कुमार सोनी और सोनी कुमार गुप्ता को दोषी माना गया. दोषियों की सजा का ऐलान 10 सितंबर को किया जाएगा.
मरहूम सांसद को मिला क्लीन चिट
यह फैसला आने के बाद शहाबुद्दीन के परिवार और समर्थकों की ओर से सवाल उठ रहे हैं कि अगर उनका नाम इस मामले में नहीं था, तो आखिर क्यों मीडिया और सत्ता ने मिलकर उन्हें देश का सबसे बड़ा ‘विलेन’ बनाकर पेश किया? शहाबुद्दीन की 2021 में कोरोना काल में दिल्ली की जेल में मौत हो गई थी. उनके परिवार और समर्थकों ने इसे संस्थागत हत्या बताया था. उस वक्त न केवल केजरीवाल सरकार ने उनके शव को पैतृक गांव ले जाने की अनुमति देने से इनकार किया, बल्कि उनकी मैय्यत में बेहद सीमित लोगों को शामिल होने दिया गया.
सबसे बड़ी हैरानी इस बात की रही कि राजद के संस्थापक सदस्यों में से रहे शहाबुद्दीन की मौत पर न तो लालू प्रसाद यादव और न ही तेजस्वी यादव ने कोई संवेदना जताई. जबकि वे उस समय दिल्ली में मौजूद थे. समर्थकों का आरोप है कि पार्टी ने अपने ही पुराने सिपाही को मरने के बाद भी पूरी तरह अकेला छोड़ दिया.
सबसे बड़ा सवाल
अब जब अदालत ने शहाबुद्दीन को इस केस से पूरी तरह क्लीन चिट दे दी है, तो सवाल यह है कि क्या मीडिया और सत्ता उन्हें बेकसूर साबित करने की नैतिक जिम्मेदारी लेगी? क्या कभी यह स्वीकार किया जाएगा कि बिना अदालत के फैसले के किसी को दोषी ठहराना लोकतंत्र और न्याय प्रणाली के लिए खतरनाक है?
मीडिया को लेकर उठ रहे हैं सवाल
इस पूरे प्रकरण ने भारतीय मीडिया और राजनीति के उस चेहरे को बेनकाब किया है, जहां सत्ता की ज़रूरत और टीआरपी की दौड़ में इंसाफ़ की असली तस्वीर दबा दी जाती है. राजदेव रंजन की हत्या का सच अदालत ने सामने ला दिया है, मगर मीडिया ट्रायल की सच्चाई अब भी समाज के सामने सवाल की तरह खड़ी है.