प्रतीकात्मक तस्वीर
Indian Currency Value in International Market: विदेशी निवेशकों की लगातार लिवाली और कच्चे तेल की कीमतों में आई गिरावट की बदौलत भारतीय रुपया सोमवार (20 अक्टूबर) को शुरुआती कारोबार में गिरावट दर्ज की गई. अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 14 पैसे की मजबूती के साथ एक महीने के उच्च स्तर 87.88 पर पहुंच गया.
अंतरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में रुपये की शुरुआत 87.94 पर हुई और शुरुआती कारोबार के दौरान यह सीमित दायरे में उतार-चढ़ाव करता रहा. कारोबार के दौरान रुपये ने 87.95 का निचला स्तर और 87.88 का ऊपरी स्तर छुआ. खबर लिखे जाने तक रुपया 87.88 पर था, जो पिछले सत्र के मुकाबले 14 पैसे ज्यादा मजबूत है. शुक्रवार को यह डॉलर के मुकाबले 88.02 पर बंद हुआ था.
विश्लेषकों का कहना है कि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) की तगड़ी खरीदारी और घरेलू शेयर बाजार में तेजी ने रुपये को सहारा दिया है. सेंसेक्स और निफ्टी दोनों में सोमवार को शुरुआती सत्र में बढ़त देखने को मिली, जिससे निवेशकों का भरोसा बढ़ा.
इस बीच छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की स्थिति को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक मामूली रूप से 0.02 प्रतिशत बढ़कर 98.45 पर पहुंच गया. वहीं, वैश्विक तेल मानक ब्रेंट क्रूड वायदा कारोबार में 0.31 प्रतिशत गिरकर 61.10 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया. कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट भारत जैसे आयातक देशों के लिए राहत भरी खबर है, क्योंकि इससे आयात बिल घटता है और चालू खाते का घाटा नियंत्रित रहता है.
हालांकि, विपक्षी दलों ने रुपये में आई इस मामूली मजबूती पर सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए हैं. कांग्रेस और अन्य दलों का कहना है कि रुपये में हालिया दिनों में लगातार रुपये की वैल्यू में गिरने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक नीतियां जिम्मेदार हैं. उनकी कोई भी नीतियां दीर्घकाल में देश के लिए फायदेमंद साबित नहीं हो रही हैं. विपक्ष का तर्क है कि मोदी सरकार की "मेक इन इंडिया" और "आत्मनिर्भर भारत" जैसी योजनाओं का जमीनी असर सीमित रहा है, जबकि निर्यात और औद्योगिक उत्पादन के आंकड़े अभी भी उम्मीद से नीचे हैं.
आर्थिक विशेषज्ञों का भी मानना है कि रुपये की मजबूती फिलहाल वैश्विक कारणों का परिणाम है, न कि घरेलू सुधारों का. विशेषज्ञों के अनुसार, अगर अमेरिकी डॉलर मजबूत होता है या कच्चे तेल के दाम फिर से चढ़ते हैं, तो रुपये पर फिर दबाव बढ़ सकता है. फिलहाल बाजार में निवेशकों का रुख सकारात्मक बना हुआ है, लेकिन दीर्घकालिक स्थिरता के लिए भारत को अपने औद्योगिक उत्पादन, निर्यात और विदेशी निवेश को बढ़ाने पर ध्यान देना होगा.